मंगलवार, 26 अक्टूबर 2010

My Childhood Poems

 ७-मार्च- १९९५
मेरे संग आ के मिलेगा क्या, मैं हूँ एक फ़साना दर्द भर.
सब लूट चुकी है ख़ुशी मेरी, मैं रह गया बस दर्द भर.
फूलें हैं लूटती खुसबू मगर मैं हूँ लूटता बस दर्द भर.
गैरों से मुहब्बत की थी, मुझे मिल गया बस दर्द भर.
अपनों से हुआ बेगानापन, मैं रह गया बस दर्द भर.
लोगों से मिला मैंने भी दी, बन गया फ़साना दर्द भर.
३-जुलाई-१९९४ 
जहाँ में रुला कर भेजा तुमने,  जायेंगे तो जी भर मुस्कुरंगे हम,
तेरा दिया हर चीज़ है कुबूल, गम दिया है तो हंस कर गुजरेंगें हम.
अब न ख़ुशी की आरजू करूँगा, जो दोगे वही हंस कर ले लेंगे हम.
हार कर मेरी दामन में खुशियाँ भरोगे, तुम से कुछ नहीं मांगेंगे हम.
तुम जो देते हो गम छुपा कर ख़ुशी, गम छुपा कर ख़ुशी से मुस्कुराएंगे हम.
मुस्कुराने की ताकत तुन दोगे मुझे, मुस्कुराएंगे  हम मुस्कुराएंगे हम.
तुम दोगे ख़ुशी इन्तहा तक मुझे, तभी फिर तेरे पास आयेंगे हम.
जहाँ में रुला कर भेजा तुमने,  आयेंगे  तो जी भर मुस्कुरंगे हम,
 १७-मार्च-१९९५ 
 वो दिन अब न लौटेंगे, अफसाने याद आते हैं,
कुछ आंसू जो निकलते हैं, उन्हें और पास लाते हैं.
अपने रह गए अपने, बगाने याद आते हैं,
अपना कह नहीं सकते, वो घर से दूर रहते हैं,
बेगाने कह नहीं सकते वो दिल के पास होते हैं.
1-अगस्त-१९९४
 खुशियाँ कभी मातम को अपने संग लाती है,
मातम कभी खुशियों का सेहरा बांध जाती है.
गिला है खुद के नज़रों से जो खा कर धोखा,
मातम को ख़ुशी औ ख़ुशी को मातम देख जाती है.
है वक्त का तकाजा, दिखती हुई बहारें, मिलाती हुई  मुहब्बत,
खिलाती गुल, मुरझाता फूल, तड़पता हुआअरमान,
धधकते दिल की ज्वाला ,बस एक फ़साना बन के रहती है.
संग-अ-वक्त बदलता है, तेरा वजूद औ उम्र, तेरा ज़माना,
तेरा हकीकत, तेरा दौलत, झूठ है तेरा अब तक का शोहरत,
क़यामत के घडी इन्सान अकेला हो के रहता है.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें